नई दिल्ली, 30 अक्टूबर (आईएएनएस)। कोरोना काल में बच्चों के स्कूल बंद होने के चलते खिलौने की बिक्री सुस्त पड़ जाने से आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहे देश के खिलौना कारोबारियों के सामने भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) प्रमाणन की अनिवार्यता का अनुपालन करने को लेकर मुश्किलें खड़ी हो गई हैं।
अगले साल एक जनवरी से बीआईएस द्वारा प्रमाणित खिलौने ही देश के बाजार में बिक सकेंगे, जिसके लिए खिलौना विनिर्माताओं को अपनी फैक्ट्रियों में बीआईएस से प्रत्यापित लैब लगाने होंगे।
खिलौना कारोबारी बताते हैं कि लैब लगाने का खर्च इतना अधिक है कि छोटे कारोबारियों के लिए इस खर्च को वहन करना मुश्किल है। ट्वॉय एसोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रेसीडेंट अजय अग्रवाल ने आईएएनएस से कहा कि एक लैब लगाने में तकरीबन आठ से 10 लाख रुपये खर्च होता है और छोटे कारोबारी इतना खर्च नहीं उठा सकता।
अग्रवाल ने कहा, हमने सरकार से कहा है कि छोटे कारोबारियों को उनके खिलौने को थर्ड पार्टी लैब से टेस्ट करवाने के बाद पास होने पर बेचने की इजाजत दी जाए। उन्होंने कहा कि देश में करीब 5,000 से 6,000 खिलौना विनिर्माता हैं, लेकिन नये नियम के तहत लाइसेंस के लिए महज 125 कारोबारियों ने आवेदन किया है जिनमें से 25 लोगों को लाइसेंस मिला है।
उन्होंने कहा कि अगले साल से एक जनवरी से खिलौना (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश लागू होने जा रहा है, लेकिन लाइसेंस के लिए आवेदन करने की गति इतनी सुस्त है कि आगे खिलौने का विनिर्माण, आयात व आपूर्ति में मुश्किलें आएंगी, इसलिए सरकार को या तो नियमों में ढील देनी होगी या फिर समय बढ़ाना होगा।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाले उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग द्वारा 25 फरवरी, 2020 को जारी खिलौना (गुणवत्ता नियंत्रण) आदेश के अनुसार, खिलौने पर भारतीय मानक चिह्न् यानी आईएस मार्क का इस्तेमाल अनिवार्य होगा। यह आदेश एक सितंबर 2020 से प्रभावी होना था, मगर बाद में 31 दिसंबर 2020 तक की छूट दी गई और अब एक जनवरी 2020 से प्रभावी होगा।
अग्रवाल ने बताया कि चीन से खिलौने का आयात अभी हो रहा है, लेकिन आयात में पिछले साल के मुकाबले करीब 20 फीसदी की कमी आई है।
दिल्ली-एनसीआर के खिलौना कारोबारी और प्लेग्रो ट्वॉयज ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर मनु गुप्ता ने बताया कि चीन से खिलौने के आयात में काफी कमी आई है। हालांकि उन्होंने कहा कि कोरोना काल में देश में खिलौने की बिक्री भी काफी सुस्त रही है, क्योंकि स्कूल बंद हैं और खिलौने की सरकारी खरीद भी कम हो रही है। गुप्ता ने कहा कि जहां तक सीधे एंड-कंज्यूमर की खरीद का सवाल है तो इंडोर प्ले आइटम्स की मांग इस समय काफी ज्यादा है, लेकिन लग्जरी व मॉर्डन ट्यॉज की मांग अच्छी नहीं है, जिनमें आउटडोर ट्यॉज, लाइट एंड म्ॅयूजिक के खिलौने, रिमोट कंट्रोल के खिलौने आते हैं जिनका बाजार सुस्त है।
उन्होंने कहा कि छोटे बच्चों के स्कूल बंद होने से स्कूलों द्वारा खिलौने की खरीद बिल्कुल नहीं हो रही है। गुप्ता ने बताया कि खिलौने के सबसे बड़े खरीददार सरकार होती है। उसके बाद स्कूल, फिर एंड-कंज्यूमर। सरकार आंगनवाड़ी व बच्चों के स्कूलों के लिए खिलौने खरीदती है।
गुप्ता ने बताया कि मॉल में जो खिलौने के कॉर्नर की दुकानें होती थीं वे तकरीबन बंद हो चुकी हैं। उन्होंने भी बताया कि सरकार के नये नियमों का पालन करना माइक्रो स्तर के खिलौना विनिर्माताओं के लिए कठिन है क्योंकि लाइसेंस लेने के लिए जितना खर्च होता है उतना कई कारोबारियों का निवेश भी नहीं है।
कारोबारियों के मुताबिक, देश में खिलौने का रिटेल कारोबार करीब 18,000-20,000 करोड़ रुपये का है, जिसमें करीब 75 फीसदी खिलौने चीन से आते हैं। लेकिन उनका कहना है कि सरकार द्वारा खिलौने के देसी कारोबार को बढ़ावा देने के मकसद से बनाए गए नियमों का आने वाले दिनों में लाभ देखने को मिलेगा, हालांकि छोटे कारोबारियों के लिए नियमों में थोड़ी ढील देने की जरूरत है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विगत में मन की बात रेडियो कार्यक्रम के दौरान देश की युवा प्रतिभाओं से भारतीय थीम वाले गेम्स बनाने की अपील की थी। मोदी ने कहा कि हमारे देश में लोकल खिलौनों की बहुत समृद्ध परंपरा रही है।
भारत के कुछ क्षेत्र टॉय क्लस्टर्स के रूप में भी विकसित हो रहे हैं। कर्नाटक के रामनगरम में चन्नापटना, आंध्र प्रदेश के कृष्णा में कोंडापल्ली, तमिलनाडु में तंजौर, असम में धुबरी, उत्तर प्रदेश का वाराणसी कई ऐसे नाम हैं।
पीएमजे-एसकेपी
.Download Dainik Bhaskar Hindi App for Latest Hindi News.
Source From
RACHNA SAROVAR
CLICK HERE TO JOIN TELEGRAM FOR LATEST NEWS
Post a Comment